रहने दो
रहने दो
माना कि जादुई शाम के जलवों ने उन्मादित चाहत की चद्दर बिछा रखी है हमदोनों की उर धरा पर।
यूँ इतना करीब आके उरों की आग को न भड़काओ रहने दो प्रीत की प्रवाल को नर्मी की संदूक में ही रहने दो।
मेरी गोरी त्वचा की परत पर न फ़ेरो अपनी ऊँगलियों की ललक चिंगारी को हल्की ही सही हवा न दो।
न बहको यूँ मेरी गेसूओं की खुशबू को साँसों में भरकर प्रणय का गान अभी ज़रा मद्धम गाओ।
बहक जाते हैं एहसास मेरे तिश्नगी को थोड़ा काबू में रखो, हाँ माना कि मंज़ूर है हमें भी आपकी आगोश की गर्मी।
पर डरती हूँ वल्लाह तुम्हारी तलब को चूमकर ख़्वाहिशों की ललक हमें हद पार न ले जाए कहीं।
तबाह कर देगी दिलों की बसाई बस्ती को बुरी है बहुत बुरी रवायतें ज़माने की दो प्रेमियों की नज़दीकीयाँ कहाँ भाती हैं ।
दबे एहसास को दिल की अंजुमन में दबे ही रहने दो रहने दो, चर्चे हमारे इश्क के सरेआम न हो जाए कहीं।