पास आओ कभी
पास आओ कभी
दूर क्यों रहते हो पास आओ कभी,
मेरे दिल को ना इतना सताओ कभी।
बेक़रार है वो भी है मुहब्बत उसे,
इश्क़ है तो उसे फ़िर जताओ कभी।
पलकें यूँ ना झुकाकर रखो ऐ सनम,
नज़रों से नज़रें भी तो मिलाओ कभी।
मिट जाए ये ग़म-ए-दिल सभी इस तरह
इक दफा तो गले से लगाओ कभी।
पूरी कर दो अधूरी मेरी ज़िन्दगी,
तुम शरीक-ए-हयात बन ही जाओ कभी।
ज़िस्म को है ज़रूरी ये क़ुर्बत तेरी,
आग ये रूह की भी बुझाओ कभी।

