STORYMIRROR

Jalpa lalani 'Zoya'

Others

4  

Jalpa lalani 'Zoya'

Others

दिलनशीं

दिलनशीं

1 min
330



2212  2212  2212  2212

वो पूछते है क्यों हो गुमसुम, आँखों में क्यों है नमी?

वो ज़िन्दगी में है नहीं, कहते हैं किस की है कमी!


करनी है उनसे ढ़ेर सारी गुफ़्तगू यूँ तो मगर,

आती नहीं होठों पे, दिल में बात वो जो है दबी


वादें वो करता झूठे, ये मैं हूँ बख़ूबी जानती, 

फ़िर भी न जाने क्यों, मैं उस पे कैसे रखती हूँ यकीं।


पहली सी ख़्वाहिश और वो ही मेरी चाहत आख़री,

कब्ज़ा खयालों पे है, दिल में है बसा वो दिलनशीं।


वो है चरागाँ-ए-निशात यूँ ज़िन्दगी का ही मेरी ,

है तीरगी-ए-शब में 'ज़ोया' की वो है इक रौशनी।


[चरागाँ-ए-निशात=खुशियों का दीपोत्सव / तीरगी-ए-शब=रात का अँधेरा]

17th December 2021 / Poem 51


Rate this content
Log in