किताब-ए-ज़िन्दगी
किताब-ए-ज़िन्दगी
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मेरे महबूब, मेरी ज़िन्दगी, तुम हो ख़ुशी मेरी,
कि वो हर ज़ुल्मत-ए-शब में, हो तुम ही रौशनी मेरी।
ये दिल मेरा सनम तेरे लिए ही बस धड़कता है,
ये धड़कन क्या सनम तुम साँस भी हो आख़री मेरी।
शुआ हो तुम सहर की, तुम तव-ए-महताब हो मेरे,
ख़ुदा मेरे, दुआ हो तुम मेरी, हो बंदगी मेरी।
फ़क़त नाम-ए-वफ़ा से इब्तिदा है इस मुहब्बत की
कि तुझसे ही मुकम्मल है किताब-ए-ज़िन्दगी मेरी
हो आगाज़-ए-ग़ज़ल ज़ोया के तुम, अंजाम भी तुम हो,
हो तुम कागज़, कलम मेरे, हो तुम ही लेखनी मेरी।
ज़ुल्मत-ए-शब=अँधेरी रात / शुआ=किरण / तव-ए-महताब= ray of moon / इब्तिदा=शुरुआत
7th January 2022 / Poem 54