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Jalpa lalani 'Zoya'

Abstract Romance Others

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Jalpa lalani 'Zoya'

Abstract Romance Others

किताब-ए-ज़िन्दगी

किताब-ए-ज़िन्दगी

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1222  1222  1222  1222

मेरे महबूब, मेरी ज़िन्दगी, तुम हो ख़ुशी मेरी,

कि वो हर ज़ुल्मत-ए-शब में, हो तुम ही रौशनी मेरी।


ये दिल मेरा सनम तेरे लिए ही ब

स धड़कता है,

ये धड़कन क्या सनम तुम साँस भी हो आख़री मेरी।


शुआ हो तुम सहर की, तुम तव-ए-महताब हो मेरे,

ख़ुदा मेरे, दुआ हो तुम मेरी, हो बंदगी मेरी।


फ़क़त नाम-ए-वफ़ा से इब्तिदा है इस मुहब्बत की

कि तुझसे ही मुकम्मल है किताब-ए-ज़िन्दगी मेरी


हो आगाज़-ए-ग़ज़ल ज़ोया के तुम, अंजाम भी तुम हो,

हो तुम कागज़, कलम मेरे, हो तुम ही लेखनी मेरी।


ज़ुल्मत-ए-शब=अँधेरी रात / शुआ=किरण / तव-ए-महताब= ray of moon / इब्तिदा=शुरुआत 

7th January 2022 / Poem 54


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