Jalpa lalani 'Zoya'

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तिश्नगी-ए-क़ुर्बत

तिश्नगी-ए-क़ुर्बत

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दिल के सागर में यूँ लहरों को उठाया न करो,

सोना  बाहों  में  तेरी,  ऐसे  जगाया  न  करो।


अब नहीं लगता किसी काम में ये दिल जानाँ,

ऐसे ज़ेहन में भी पल पल यूँ ही आया न करो।


हूँ   मैं   बैचेन   तेरी   तिश्नगी- ए -क़ुर्बत   में,

ज़िस्म की आग जलाकर यूँ ही जाया न करो।


देख   आँसू   तेरे,  आँखें   मेरी  होती  हैं नम,

यूँ ही तुम अपने ये अश्कों को बहाया न करो।


जान  मेरी  कभी  मिलने  मुझे आ भी जाओ,

तुम  यूँ  ख़्वाबों में  मुझे ऐसे  सताया  न करो।

24th December 2021 / Poem 52



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