तिश्नगी-ए-क़ुर्बत
तिश्नगी-ए-क़ुर्बत
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दिल के सागर में यूँ लहरों को उठाया न करो,
सोना बाहों में तेरी, ऐसे जगाया न करो।
अब नहीं लगता किसी काम में ये दिल जानाँ,
ऐसे ज़ेहन में भी पल पल यूँ ही आया न करो।
हूँ मैं बैचेन तेरी तिश्नगी- ए -क़ुर्बत में,
ज़िस्म की आग जलाकर यूँ ही जाया न करो।
देख आँसू तेरे, आँखें मेरी होती हैं नम,
यूँ ही तुम अपने ये अश्कों को बहाया न करो।
जान मेरी कभी मिलने मुझे आ भी जाओ,
तुम यूँ ख़्वाबों में मुझे ऐसे सताया न करो।
24th December 2021 / Poem 52