समझ
समझ
प्रभा आंटी दो रूपये की लड़ाई बंद करो।
कुछ तो नेक कर्म करो।
कितनी मेहनत से की उसने सिलाई है।
अपना दिल भी तो थोड़ा बड़ा करो।
चालीस का पहले अड़तिस कराया।
फिर कहती हो दो रुपए दो।
क्यों न आप ही पूरे अड़तिस दो।
हक उसका मार रही हो।
क्यों अमीरी का रोब झाड़ रही हो।
वह तो स्वाभिमानी है।
अड़तिस छोड़ देगा।
भूखा भी रह लेगा।
लेकिन आपके पेट में अड़तिस?
पानी की बूंद बन जाएगा।
या फिर तिजोरी में जमा हो जाएगा?
अमीरी कंजूसी से तगड़ा मेल बिठाया है।
क्यों कर इतना जोड़ जमाया है।
तिजोरी तुम्हारे काम भी न आएगी।
कुकर्मों का बोझ बन जाएगी।
खून चूसा, खून ही जमाया है।
सब धरा रह जाएगा।
तुम्हारे साथ तो सिर्फ,
कर्मों का हिसाब ही जाएगा।
खुदा से डरो सही न्याय करो।
कुछ तो अपना नाम करो।