आसमां नहीं
आसमां नहीं
सारे जहां का यकीं
पा कर भी क्या करूँ मैं
तुझको ही गर मुझ पर
जरा-सा यकीं नहीं
फिजूल है हर शख्स का
वजूद ऐ नसीब
गर मेरी जिंदगी में
तेरी जुस्तुजू नहीं
पाकर भी सबकी नेमतें
अधूरी है जिंदगी
मेरे इस जिगर में
जो तेरी ख्वाहिशें नहीं
शहर की उमड़ती भीड़ में
सूना है दर मेरा
तेरे नक्श-ए-पा की
जो इस पे आहटें नहीं
हो नसीब तेरे प्यार में
तनहाइयाँ सही
मंजूर मगर फासले
तुझसे, मुझे नहीं
होती हैं जिंदगी से
कितनी मासूम-सी चाहतें
मगर मंजूर खुदा को
उनकी तामीलगी नहीं
पागल दिल देखता
नामुमकिन से ख्वाब है
हकीकत की बानगी को
क्यों ये मानता नहीं
तेरी मुहब्बत में मिले
अश्क भी हैं अजीज
दूरी की मुस्कुराहट
ये दिल चाहता नहीं
खो दी जो तेरे नाम की
पहचान मेरे दोस्त
इस जहां में मुझसा
कोई बदनसीब नहीं
गिरता है तो गिर जाये
खुदा का कुफ्र भी
तेरी जमीं से ऊँचा
कोई आसमां नहीं........।।

