चंपा फूली.....
चंपा फूली.....
चंपा फूली कोयल ने कूक लगाई।
बौर के फुटाव से बौरा गई अमराई।।
जूही और मोगरा ले-ले कर अंगड़ाई।
बसंत में यौवन की दे रहे दुहाई।।
पीत वसन सिंगार कर वसुंधरा लजाई।
बसंत ने माथे पर चुंबन की टिकुली सजाई।।
सरसों की भीनी गमक, दिसि-दिसि है महकाई।
चिड़ियों की चहचहाहट भगा रही तनहाई।।
पपीहे की पीहू-पीहू, पी की अलख जगाई।
बुलबुल की चहुँ ओर गूंज उठी शहनाई।।
पी आएँगे... इस धुन में सुध-बुध है बिसराई।
पलक-पाँवड़े राहों पर, कब आओगे हरजाई ?
अंबर पर दिनकर ने अरुण रश्मि है छिटकाई।
वासंती भोर में धूप भी है तनिक अलसाई।।
बसंत पंचमी पर्व की सभी को दिल से बधाई।
लेखन के इस महाकुंभ से लेते सस्नेह विदाई।।