विदाई की बेला
विदाई की बेला
आज विदाई की बेला में
नयन हैं तेरे भरे-भरे...
चंद सपने हैं, चंद आँसू भी
यादों के उपवन हरे-हरे...
चैरेवेति... जीवन की
यही रीत है ऐ साथी.!
पीछे मुड़कर यादों के
जख्मों को क्यों सहलाते हो.?
क्यूँ सूरत हर बेगानी-सी
है आज यहाँ अपनी लगती...!
सबको गले लगाने की
इच्छा क्यूँ उर में है जगती...!
क्या सोच बहाते हो अश्रु..?
क्यों नयन-नीर भर लाते हो..?
इस जीवन की है नियति यही
क्यों व्यर्थ हृदय भरमाते हो..?
मिलना और बिछड़ना तो
सत्य सनातन नियम यहाँ
सूर्य बनो तुम अंबर के
रौशन कर दो यह सारा जहाँ....
ख्वाब तुम्हारी आँखों के
नायाब हकीकत में बदलें
आशीष यही है हर दिल की
तकदीर सितारों सी सँवरे
खुशहाल रहो, आबाद रहो
बस ये ही दुआ है हम सबकी
इक दिन सब ने जाना है
ले पीर पराये जीवन की....
यहाँ अपना और पराया क्या
जीवन ये मुसाफिरखाना है
कल तुमसे मिले, आज बिछड़ रहे
इतना ही आबोदाना है..........।