औरत
औरत
झोली भरते-भरते
सबकी
खुद रीत जाती है।
जरूरत पर अपनी
अक्सर नारी
खुद को
तनहा ही पाती है।
अक्सर औरत
तजना चाहती है
घर-संसार अपना
सबके ख्वाब
पूरे करने पर भी
जब संजो नहीं पाती
अपना छोटा-सा सपना।
घर को
समर्पित कर देती
जो अपने दिन और रात....
बच्चों की परवरिश,
पति-परिवार के
दायित्वों के साथ
खुद की
नौकरी को भी
बखूबी निभाती है....
हर जिम्मेदारी के प्रति
पूरी तरह
समर्पित हो जाती है...
सबकी खुशियों पर
अपनी
हर ख्वाहिश
हार जाती है.....
लेकिन....
चाहती है जब वो
अपने लिए
छोटी सी कामना
किसी को भी
अपने साथ
नहीं पाती है....
एक ही ठेस में
मिट्टी के
घरौंदे -सी बिखर
जाती है....
स्वयं को
समझती थी जो
संपूर्ण और सफल...
सबके बीच
खुद को
बेहद तनहा पाती है....
पूरी करते-करते
फरमाइशें सबकी
जो थकी नहीं कभी...
अपनी इक
छोटी-सी ख्वाहिश के लिए
रो-रो कर
तरस जाती है....
इसीलिए हर औरत
चाहती है तजना
कभी ना कभी
घर-संसार अपना....
जब पूरा नहीं
कर पाती
अपना छोटा-सा सपना...।।