मेरे देश की धरती....
मेरे देश की धरती....
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मेरे देश की धरती पर
गंग-जमुन के धारे हैं मिलते
इनकी शोभा कहते निर्झर
कल-कल स्वर में बहते-बहते
तारावली छिटकाये नभ में
जब इसकी रातें गाती हैं
महुआ की भीनी खुशबू से
सबके दिल को भरमाती हैं
चकवों की यह प्रणय-स्थली
कस्तूरी हिरणों की धरती
इसके सुंदर सुरम्य वनों में
पलती है इक अद्भुत सृष्टि
रंग-बिरंगे पाँखी मिलकर
करते कलरव चह-चह-चह-चह
षट् ऋतुओं का अद्भुत क्रम
कानों में जाता कुछ कह-कह
भारत की पावन धरती यह
जीवन यहीं हर बार मिले
जन्म-जन्म वंदना इसी की
इस पर ही निकले दम यह.