STORYMIRROR

PRADYUMNA AROTHIYA

Abstract Tragedy

4  

PRADYUMNA AROTHIYA

Abstract Tragedy

कुदरत की खामोशी

कुदरत की खामोशी

1 min
390


न बादल गरजे

न एक बूँद बरसी,

कैसी बरसात की 

यह सुबह शाम

इंसान क्या छोटे-छोटे जीव

एक बूँद के लिए तरसे।


आँसू थे या न थे

मगर आँखें शुष्क,

इंसान ने जिसको छेड़ा 

अपने आराम के लिए,

वही उसके लिए काल बन गया

अनन्त काल के लिए।


यह प्रमाण है

निकट भविष्य की

भविष्य वाणी का,

कुदरत को बदलने वाले श्राप है

कुदरत की खामोशी का।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract