कुदरत की खामोशी
कुदरत की खामोशी


न बादल गरजे
न एक बूँद बरसी,
कैसी बरसात की
यह सुबह शाम
इंसान क्या छोटे-छोटे जीव
एक बूँद के लिए तरसे।
आँसू थे या न थे
मगर आँखें शुष्क,
इंसान ने जिसको छेड़ा
अपने आराम के लिए,
वही उसके लिए काल बन गया
अनन्त काल के लिए।
यह प्रमाण है
निकट भविष्य की
भविष्य वाणी का,
कुदरत को बदलने वाले श्राप है
कुदरत की खामोशी का।