शब्द
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शब्द हैं
मगर अधूरे से हैं
किस गली किस मोड़ पर
ढूँढू उन्हें
तमाशे अपने ही बहुत से हैं
ये जल रहे दरवाजे
बाहर के रास्ते रुके से हैं
फिर भी बेपरवाह
जिंदगी के लिए जिंदगी से दूर
गामक कदम से हैं
यूँ ही टूट रहे
पुराने शब्दों के धागे
क्या वे बेबुनियाद से हैं
खुद से घबराते हैं
चिल्लाते हैं
क्या यही जिंदगी के हालात से हैं।