दिल से दिल तक।
दिल से दिल तक।
जब पहली बार हम-तुम दोनों मिलेे,
दिल से दिल तक अज़नबी ही मिले।
तब तुम भी थे न बिल्कुल अज़नबी।
मैं भी तो था ना सिर्फ़ एक अज़नबी।
नज़रों नज़रों ने खेला प्रेम का ये खेल,
हुआ फिर हम दोनों के दिलों का मेल।
सुन ना समझें थे हम ना समझें थे तुम,
दिल से दिल का अपना हो रहा था मेल।
देख तो लिया तुमनें सुंदर घोंसला मेरा,
पर नहीं देखा कि तुझ बिन मैं हूँ तन्हा।
भूलना न इतना आसान है होता सनम,
साँस तुम बिन साँस कैसे जीना हमदम।