वो जो ज़िन्दगी थी मेरी कभी
वो जो ज़िन्दगी थी मेरी कभी
वो जो ज़िन्दगी थी मेरी कभी;
वो जो पहला पहला ख़ुमार था।
मुझे ज़िन्दगी में नहीं मिला;
मेरी ज़िन्दगी का जो प्यार था।
ये जो अश्क़ अपने ही पी रहा;
ये जो क़िस्त क़िस्त में जी रहा,
मैं चुका रहा हूँ वो आज भी;
जो तेरा पुराना उधार था।
मेरी ज़िन्दगी का उसूल है;
जो तुझे ख़ुशी दे क़ुबूल है,
क्यूँ शिकायतें मेरे दिल में हों;
न कभी भी कोई क़रार था।
जो नसीब में है लिखा नहीं;
मुझे ख्वाब कोई दिखा नहीं,
मैं अभी भी चैन से जी रहा;
मैं तभी भी शुक्र-गुज़ार था।
मेरी ज़ीस्त में जो ख़ुशी दिखी;
वो भी नाम तेरे ही कर लिखी,
तू भी ग़म तेरे मुझे दे ज़रा;
मैं हिसाब में हुशियार था।