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सीमा शर्मा सृजिता

Romance

4  

सीमा शर्मा सृजिता

Romance

तुम यहीं हो...

तुम यहीं हो...

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337


मैंने तुम्हें बस तन्हाई में याद किया 

ये बात तुम्हें हमेशा कचोटती

तुम जाना चाहते थे 

और तुम चले गए 

मगर सुनो ! 

तुम अब भी यहीं हो 

मेरे आसपास 

मेरे बहुत पास 

तुम्हारे कंधे पर सर रखकर 

मैं अक्सर बांटती हूं अपना दर्द

तुम आगे करते हो अपनी हथेली

मैं टपका देती हूं आंसू

तुम पी लेते हो मेरा दुःख

तुम छू लेते हो बस इतना 

कि लगा सको मरहम 

मेरे हर जख्म पर

तुमसे करती हूं मैं बातें 

ढेर सारी बातें

तुम सुनते हो गौर से

बस सुनते जाते हो 

तुम लाते हो कुछ फूल

मुस्कराते - खिलखिलाते

रख देते हो मेरी झोली में

मैं बिखरा देती हूं

महकती है एक मनमोहक खुशबू

महक जाती हूं मैं भी

फिर आती हूं मैं करीब

बस इतना करीब

कि सुन सकूं तुम्हारी धड़कन

उस धड़कन में अपना नाम

तुम्हें पता है 

मेरी दुनिया से 

तुम तभी जाओगे 

जब मैं जाने दूंगी 

और मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगी.......

     


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