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Ayushi Akanksha

Romance

4  

Ayushi Akanksha

Romance

उलझनें

उलझनें

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चाहती तो मैं ये बेशक नहीं

के मेरी अमावस की रात का चांद बनो तुम ,

चाहत तो बस इतनी है कि 

उस रात में मेरा हाथ थामे साथ रहो तुम ।


चलो बिछड़ भी गए इक रोज़ मज़बूरी के हाथों मज़बूर हुए हम दो परिंदे ,

ख्वाहिश बस इतनी होगी

के आबाद रहो तुम ।

और जो कुछ वक्त के बाद छूट जाए वो आदत नहीं,

बल्कि जो मरते दम तक साथ रहे 

वो जज़्बात बनो तुम ।


चाहती तो नहीं के झूठी दिलासा दिए,

मुझमें तुम्हारे लौट आने की उम्मीद भरो तुम।

अपितु शौक से वो आंसू बन जाना ,

जो खुशी और ग़म दोनों में आ जाए 

और मैं खुद से कहूॅं , हॉं साथ हो तुम ।

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शायद मैं बोझ हूॅं तुम्हारे सर का

इसीलिए तो अक्सर नकारते हो तुम ,

पर फिर भी जिसकी एक झलक पे

होठों पर आ जाती है वो मुस्कान हो तुम । 


कोसो दूर भागते हो मुझसे ,और दूर हो तुम,

ना जाने ये कैसा भ्रम है जो एहसास कराता है

के अब तलक पास हो तुम ।


चले जाओगे तो चले जाना 

रोकूंगी भी किस हक से तुम्हें ॽ

जब तुम्हारे मन में ही ये सवाल उठता है,

आखिर मेरी हो कौन तुम ॽॽ 


फरयाद अस रब से तब भी यही रहेगी

के दिल से साथ रहो तुम ।

क्योंकि मैं ये प्रश्न खुद से कभी नहीं पूछती 

के आखिर मेरे हो कौन तुम ॽॽ


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