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Ayushi Akanksha

Tragedy

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Ayushi Akanksha

Tragedy

लफ्ज़ वो जो चीखते हैं मेरे भीतर।

लफ्ज़ वो जो चीखते हैं मेरे भीतर।

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लफ्ज वो जो चीखते हैं मेरे भीतर

मेरे बाहर वो कभी सुने नहीं जाते। 


चिल्लाती है खामोशी अक्सर ही 

एक आवाज़ जो मुझमें बर्बाद हुए है

धीरे धीरे खतम हुए हर अरमान

एक डर जो हकीकत में आबाद हुए है,


सहमे हुए गुहार लगा रहे वो सारे 

मेरे ख्वाब जो मुझसे बुने नहीं जाते 

लफ्ज वो जो चीखते हैं मेरे भीतर

मेरे बाहर वो कभी सुने नहीं जाते।


टूटते हुए देखे हैं मैंने,

दिल,चाहत और सपने को,

बदलते हुए देखे हैं मैंने, 

दिन ,रात और फिर अपने को


खोद कर कब्र, दफ़ना रहे खुद को

दिल के वो टुकड़े जो मुझसे चुने नहीं जाते,

लफ्ज वो जो चीखते हैं मेरे भीतर 

मेरे बहार वो कभी सुने नहीं जाते।


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