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Ayushi Akanksha

Romance

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Ayushi Akanksha

Romance

तुम हो

तुम हो

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एक बात उसकी जिससे टूटी मैं

उसकी मुझे भूल जाने की बात से 

उससे रूठी मैं । 

आंखों में आसूं लिए मैं पीछे मुड़ी जा रही थी , 

मानो उससे उसकी परछाई तक से मैं दूर भागे जा रही थी । 


एकाएक हाथ पकड़ मुझे रोका किसी ने , 

' यूं न जाओ रुक जाओ ' कह टोका उसी ने । 


कहा नाराज़ क्यों होती हो प्रिय 

तुम्हारी तरह मैं अगर नाराज़ हो जाऊं तो मेरी नाराजगी में तुम हो ,

वैसे तो सीधा साधा सा हूं मैं 

और तुम्हारे लिए अगर सरफिरा हूं तो मेरी आवारगी तुम हो ।।


यूं न रूठ जाओ तुम इस बात से की बात हमारी हो पाती नही 

क्यूंकि मैं बोलूं कुछ भी तो मेरी बातों में तुम हो 

और ये आंखें जो भीगा रखी है तुमने अपनी आंसुओं से 

अगर मेरी आंखों में देखो तो मेरी आंखों में तुम हो ।


क्यों मूक खड़ी हो सुन मेरी बातों को 

गर मैं इसी तरह खामोश हो जाऊं तो मेरी खामोशी में तुम हो , 

सबसे तो दूर भागता हूं मैं ,

>लेकिन अगर पास हूं तुम्हारे 

तो मेरी आशिकी तुम हो ।।


पोंछ लो आसूं अब सिसकियां न भरो

मैं जो सांस ले रहा को हवा तुम 

मेरी हर थकान और जख्म को भरती है 

मेरी जान वो दवा तुम हो । 


दिन ढल चुकी 

रात होने को आई है 

ये पवन दे रहा है बारिश होने का संदेशा ,

मौसम ने ली अंगड़ाई है । 

जाना चाहिए अब तुम्हे 

तुम्हारी जाने की बारी आई है । 


रात में अपने खिड़की से चांद को देखोगी 

समझना मैं चांद तो उसकी चांदनी तुम हो , 

सवेरा होते ही जो सूरज निकल आए 

तो समझना सूरज मैं तो रौशनी तुम हो ।।


रात को जब मैं तन्हाई में जिसे चिपट कर सोने जाऊंगा 

वो तकिया तुम हो ,

सुबह उठते ही जो मैं लूंगा वो अंगड़ाई तुम हो ।। 


मैं जो कलम हूं तो स्याही तुम हो 

मैं अगर किताब हूं को पन्ना तुम हो 

और कितना बताऊं कौन हो तुम

मेरी पूरी कहानी ही तुम हो ।।


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