तू मेरी आदत नहीं तू मेरा मर्ज है।
तू मेरी आदत नहीं तू मेरा मर्ज है।
तेरा साथ बस साथ नहीं,
मेरे गमों की खुदकुशी है,
तेरा प्यार एकमात्र प्यार नहीं
मेरे होंठों पे छलकती हंसी है,
है वजह तू गुनगुनाने का मेरे,
मेरे जीवन का तू तर्ज है।
तू मेरी आदत नहीं, तू मेरा मर्ज है।
मेरे होंठों से जा रही सिमटी खामोशी का तू इलाज है,
तेरा वो मुझे मेरा नाम से पुकारना,
मेरे संगीत का साज है।
छाया रहता है बसंत, गाती रहती है कोयल ,
इस आभास का तेरा मुझ पे कर्ज़ है,
तू मेरी आदत नहीं तू मेरा मर्ज है।
बसती हूं मैं हृदय में तुम्हारे,
गवाही इस बात की दे रहे ये चांद , ये सितारे।
मेरी छोटी से खरोच भी गहरी लगती है जिस्म में तुम्हारे।
तुमसे ही है सावन ,तुमसे ही सारे नजारे,
मेरे जख्मों पर शायद इसी वजह से तू भागा आता है ,
हाय तू कितना खुदगर्ज है।
तू मेरी आदत नहीं, तू मेरा मर्ज है ।