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Dhanjibhai gadhiya "murali"

Romance

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Dhanjibhai gadhiya "murali"

Romance

गज़ल की महेफ़िल

गज़ल की महेफ़िल

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महेफ़िल में आकर बैठी हो तुम,

मेरी गज़ल में सुर मिलता नहीं,

कातिल नजर क्युं चलाती हो तुम,

क्या वजह है वो मुझे मालूम नहीं।


मैने दिल तोडा है की तुमने तोडा,

उसका कोई नतीजा आया नहीं,

दिल तोडने में किसका नाम आयेगा,

वो मै अभी तक जानता भी नहीं।


गजब भी रंगत आई है महेफ़िल में,

तुम्हारी नफ़रत का कोई मतलब नहीं,

नफ़रत को तुम कब भूल पाओगी,

उसका मुजे कोईं अंदाज भी नहीं।


तुम्हारे इश्क की मै गज़ल गाता हूं,

प्यार से क्यों तुम सुन रही नहीं,

ऐतबार करो मेरे इश्क पे "मुरली",

मेरी बांहों में क्यूं तुम समाती नहीं।



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