उसकी गज़ल
उसकी गज़ल
उसकी गज़ल में लिखता हूं तो,
कागज हवा में उड़ जाता है,
कागज पकडकर में शुरू करुं तो,.
कलम की स्याही खत्म हो जाती है।
कैसे अब मै गज़ल को लिखू,
उसका रास्ता दिखता नहीं है,
उसके ईश्क की स्याही बनाई तो,
लिखने की शुरुआत हो जाती है।
गज़ल लिखते लिखते कागज,
कलम की नौक से फट जाता है,
अब कहां पर गज़ल मै लिखूं,
इस सोच में मन डूब जाता है।
उसके दिल को मैने देखा तो,
वह कोरा कागज जैसा लगता है,
मेरी गज़ल अब पूर्ण करने का,
बस यही एक तरीका दिखता है।
उसके दिल पर मै लिखता हूं तो,
मेरी तस्वीर दिलvमें दिखती है,
अब मै कैसे गज़ल लिखूं "मुरली",
वह खुद मेरी गज़ल बन गई है।

