मैयत
मैयत
मेरी कविता आज कुछ उदास थी
वो ढूंढ रही थी मुझे और
मैं अपनी तन्हाइयों के पास थी।
दरअसल वो कविता बड़ी ही ख़ास थी ,
कह दी गई थी उसके पहले पन्ने पर
मेरी शुरुवात मेरी तकलीफें मेरे किस्से
और लिख दी गई मेरी आस थी।
हर रोज़ की तरह उसका जिक्र करना बात ये बड़ी आम थी ,
शिकायतों के इस दौर में भी
न जाने क्यों, इस ज़िद्दी दिल को
उससे मोहब्बत_ए_तमाम थी।
रोने लगी कविता मेरी , मौत पर मेरे ,
आखिर उसके लिए मैं तो खास थी ,
आया नही मैयत पर मेरे वो शख्स
जिसकी चाहत की मैंने ओढ़ी लिबास थी।
चिता भी हंस रही थी मुझपर ,
आग के भी हंसने की आ रही आवाज़ थी ,
मैं तो थी ही नहीं कहीं किस्से कहानियों और जिंदगी में उसके,
और भ्रम पाला था की मैं उसी सरताज थी।
