राह-ऐ-मंजिल
राह-ऐ-मंजिल
जन्म से शुरू हुआ ये सफर
एक दिन मौत पे आके थम जाएगा,
राह ऐ मंजिल में मिलेंगे लोग कई
तो सब से साथ छूटता जाएगा ।
ठहरेगा न कोई साथ उम्र भर तेरे
हर वक्त तू खुद को ही साथ अपने पाएगा ।
इस राह - ऐ - मंज़िल पे ऐ मुसाफिर
तू अंत में खुद को अकेला ही पाएगा।
सुनने का शौक़ रखते हैं सभी ,
हर लोग सुनता रह जायेगा ।
कभी समझेंगे लोग तुम्हें
तो कहीं आंसू पर भी तुम्हारे हंस दिया जाएगा।
इस राह - ऐ - मंजिल पे ऐ मुसाफ़िर
अंत में तू खुद को अकेला ही पाएगा।
नही देने वाला साथ कोई ,
मदद को तेरे न बढ़ेंगे हाथ कोई।
हर कोई छूटता जाएगा,
न रहेगा कई संग तेरे
साथ तेरे बस आंसू ही रह जाएगा।
इस राह - ऐ - मंज़िल पे ऐ मुसाफिर
अंत में तू खुद को अकेला ही पाएगा।
अकेले पड़ोगे जब भी
सुनने तक को कोई न राह जायेगा
मुंह फेर लेंगे लोग कहीं
कोई तुमपर हंसता चला जायेगा
क्रंदन की इच्छा भी होगी गर तुझे
तो भी तुझे मुस्कुराना पड़ेगा,
और तू मुस्काएगा।
इस राह - ऐ - मंजिल पे ऐ मुसाफिर
अंत में तू खुद को अकेला ही पाएगा।
न तो आया कोई साथ तेरे ............. न कोई जाएगा।
कहने को साथ रहेंगे लोग तेरे
पर कोई न साथ निभाएगा।
इस राह - ऐ - मंजिल पे ऐ मुसाफ़िर
अंत में खुद को अकेला ही पाएगा।
