संक्रमण
संक्रमण


पांच बोसे मांगे थे एक दिन तुमसे,
सांची के स्तूप से वहीं रह गए... ठीक उसी स्थान पर।
प्रेमासिक्त मन ..और बोले गए शब्द ....भी घूमते रहे..
वहीं सौरमंडल में चक्कर लगाते ग्रहों की तरह।
तुम और हम पार कर आए थे वो रास्ते....
पर प्रेम सूक्ष्मजीवी सा गहरी पेठ बनाए छिपा रहा ...
मन के किसी कोने में।
तुम्हारा देखना और बस देखते जाना...
याद आ जाता अक्सर.. और फैलने लगता संक्रमण.....
एकांत पा।
बेचैनी और बीमारी बढ़ते ही ..बनने लगती हैं एंटीबॉडीज ।
फिर भी काम न चला तो लेना पड़ा ब्लड प्लाजमा यादों का और
एंटीबॉयोटिक समझ खा ली स्याही,
लेखनी बन गई डॉक्टर स्टेथोस्कॉप भावनाएं पढ़ने लगा
लिख दिया डॉक्टर के पर्चे सा बीमार का हाल ।