साहित्यकार
साहित्यकार
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कितना कुछ जानते हो तुम साहित्यकार!
कदमों की चाल से नाप लेते हो थकान..
भांप लेते हुए आंखों की कोर में. ..
सफाई से छुपाया गया एक रेगिस्तान।
पहचान लेते हो
बदलते मिजाज की कड़वाहट..
बदल जाते हो उसी क्षण अचानक..।
महसूस कर लेते हो तरंगें...
जो हैं तुम्हारे आसपास।
पढ़ लेते हो हवाओं के गीत,
पत्तों की बातचीत...
भवरों का फूलों से अनुराग।
बस नहीं पढ़ पाते तो खुद को ..
या जान के बन जाते हो अनजान।
कभी खुद से भी मिला करो..
जो रहता है तुम्हारी अनदेखी से हैरान, परेशान।