दूर देश को जाते
दूर देश को जाते
झुलस रहे इंसान ताप से,
सूरज की मनमानी..
प्यास से व्याकुल जीव जंँतु सब,
गर्मी प्राणों पर भारी।
छत पर रखें दाना पानी,
कहती थी मेरी नानी।
नेक काम में देर न करना..
समझो जिम्मेदारी।
पँछी सब मेहमान हमारे
करना खातिरदारी,
ज्यादा कि इन्हें चाह नहीं
बस थोड़ा सा दाना, पानी।
थाली से गर एक निवाला
सब रोज निकाला करते..
लाखों पंँछी भोजन पाते,
भूखे नहीं वो मरते।
मीलों उड़ते पंँछी जब
दाना,पानी पा जाते,
प्यास से व्याकुल प्राण पखेरू
लौट के फिर आ जाते।
पानी पीकर प्यास बुझाकर ..
दाना ले उड़ जाते,
घर पर नन्हे मुन्ने बच्चे
आस लगाए पाते।
दाना -पानी उन्हें खिलाकर
संतुष्टि पा जाते,
सुबह सवेरे दाना लेने..
फिर दूर देश को जाते।