STORYMIRROR

divya prajapati

Romance

4  

divya prajapati

Romance

नासमझ

नासमझ

1 min
382

मैं समझ नहीं पाती हूं 

क्या दिखता है तुम्हें मुझ में

तुम कहते हो कि मुझे ढूंढते हो

कभी बाहर कभी खुद में।


मैं समझ नहीं पाती हूं 

जब हंसते हो मेरी नादानी पर

और अगले पल तुम रूठ जाते हो

अपनी इस "दीवानी" पर।


मैं समझ नहीं पाती हूं

क्यों मेरे लिए लड़ जाते हो 

पर रोकती हूं जब मैं तुमको 

बिन बोले कुछ बढ़ जाते हो।


मैं समझ नहीं पाती हूं

क्यों चाहते हो मुझे इतना

जब "सब" कुछ है तुम्हारे पास 

शायद अम्बर जितना।


मैं समझ नहीं पाती हूं 

और तुम भी नहीं समझाते हो

क्या सच में मैं वह सब कुछ हूं

जितना की तुम चाहते हो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance