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divya prajapati

Tragedy

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divya prajapati

Tragedy

मैं और तुम

मैं और तुम

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तुम मुझे परिभाषित करते हो

परिधि में बांधने के लिए

और मैं उस परिधि को लांघती हूं 

उस परिभाषा को खुद परिभाषित करती हूं 

फिर तुम रेखाओं को और गहरा करते हो

और मैं उन रेखाओं को विभाजित करती हूं

फिर तुम मेरी धुरी तय कर देते हो

और मैं उस धुरी पर जीवन भर चलती रहती हूं

फिर शुरु होता है अस्तित्व का युद्ध 

जिसे मैं खुद मे लड़ती हूं

पर मौन रहती हूं 

और तुम सोचते हो कि तुम जीत गए

पर मेरा अंतर्मन तुम्हें धिक्कारता है 

और धिक्कारता है तुम्हारी दी परिभाषा को 

जो तुम्हारी कुंठित मानसिकता का परिणाम है 

काश!!!! 

मुझे लिखने के बजाय तुमने खुद को पढ़ा होता

तो मेरी परिधि तय नहीं होती

और ना ही मैं परिभाषित होती

मेरा मौन मूक नहीं है 

ये गूंज है तुम्हारी हार की 

जो परिणाम है 

मेरे परिणाह का।


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