मैं
मैं
रात इतनी भी गहरी नहीं थी
जितनी तुमने बतायी
और दिन इतना भी उजला नहीं था
जितना तुमने समझाया।
सिक्के के दोनों पहलू में
क्यों तुमने एक ही पहलू मुझे दिखाया ?
ऐसा नहीं लगता
जैसे कि तुमने मुझे अपने मन से चलाया।
शब्द और चित्त का जब मेल ना हो तो
बातें निश्चित उलझ जाती हैं
मैं सही तुम गलत में फिर जिंदगी निकल जाती है।
तो फिर बेहतर है
कि तुम्हारे नज़रिए को मैं अपनी नज़र बनाना छोड़ दूँ
और कुछ गीतों को मैं यूं ही गुनगुनाना छोड़ दूँ।
और शुरू करें फिर वहां से
जहां तुम तुम रहो और
मैं 'मैं' ही रहूं।