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Aravind Kumar Singh Shiva

Romance

4.6  

Aravind Kumar Singh Shiva

Romance

॥  ख़्वाब ॥

॥  ख़्वाब ॥

2 mins
369


सतरंगी चूनर में छिपा वो नज़ाक़त का रंग, 

मैं गुलाल लगाना जो चाहा तो रंग भुला बैठा,

सुनी जब दिलरुबा की आवाज तो संगीत समझ बैठा,

बेसुरी सी जिंदगी में बेसुध हो बैठा,

चढ़ा जब इश्क़ का नशा तो खुद को भुला बैठा ॥ १ ॥


तम्मना थी की बैठु मैं उनके पहलू में,

पर ऊनके नयनो में खोकर जहाँ भुला बैठा,

वो थे की अपनी चिलमन में खो बैठे,

और मैं बेवज़ह उनकी यादो में खो बैठा,

चढ़ा जब इश्क़ का नशा तो खुद को भुला बैठा ॥ २ ॥


जुस्तजू ख़्वाबों की हक़ीक़त में जब मैं बदलना चाहा,

मेरी रहो को रोकते मैं ख़ुद को ही पाया,

नजदीकियां जब जब भी मैं बढ़ाना चाहा,

तब तब दरमियाँ ही दरमियाँ नजर आया,

चढ़ा जब इश्क़ का नशा तो खुद को भुला बैठा ॥ ३ ॥


इम्तेहां की वो घड़ी थी की क़यामत की रात थी,

जब चिलमन से वो निकलीं तो किसी और के साथ थी,

हक़ीक़त दिलो की जब तक मैं समझ पता,

बहुत देर हो चूका था की बहुत देर हो चूका था,

चढ़ा जब इश्क़ का नशा तो खुद को भुला बैठा ॥ ४ ॥


ज़ख़्म उन्होंने ही दिया जो दर्दे दवा थे,

हलाल कर गए वो जो लफ्ते जिग़र थे,

दवा की चाह में मयखाने में जा पंहुचा,

की शाकी पि के लड़खड़ाया जो पहले से बेसुध था,

चढ़ा जब इश्क़ का नशा तो खुद को भुला बैठा ॥ ५ ॥


डगमगाते पैरों को संभालने की परवाह में,

बेपरवाह हो निकला मैं मयख़ाने से,

निकल गया जब मैं मुकम्मल जहाँ से,

तब वो नजरें झुकाये आयी मेरी जहाँ में,

चढ़ा जब इश्क़ का नशा तो खुद को भुला बैठा ॥ ६ ॥


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