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Vivek Madhukar

Abstract Romance

4.8  

Vivek Madhukar

Abstract Romance

ब्याह

ब्याह

1 min
318


अनायास मिल जाते हैं अनजान दो

दिल दो, जिस्म दो, जान दो

नींव इस रिश्ते की

रखी जाती है परस्पर

विश्वास एवं सौहार्द्र की

सींचा जाता है


प्रेम की पौध को

ह्रदय के लोहित से

सौंपा जाता है

तन-मन-धन,

हो जाना पड़ता है

दूसरे का खुद को मिटाकर


धड़कनें लगता है तब

दो जिस्मों में एक ही दिल

जाने कैसा तो अनूठा है

ये बन्धन ब्याह का -

समय ज्यों-ज्यों बीतता जाता है

अन्य सारे पड़ जाते हैं शिथिल

यह प्रबल से प्रबलतर होता जाता है।


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