मन की दास्तान
मन की दास्तान
सब तरफ ख़ामोशी का आलम, दास्तान क्या बयान करूँ?
लबों के संग दिल भी ख़ामोश है, दास्तान क्या बयान करूँ?
न जाने कब से सूखे अश्क गालों पर अपना पता बता देते हैं,
ख़ुश्क आँखों, कांपती पलकों की दास्तान क्या बयान करूँ?
भूली-बिसरी यादों की पगडंडियाँ दिल में ख़्वाब सजाये बैठी हैं,
मंज़िल तक न जा सकने की उनकी दास्तान क्या बयान करूँ?
क्या लिखूँ? शायद यह क़लाम उनको आख़िरी सलाम है मेरा,
अपने उजड़े दामन की सिलवटों की दास्तान क्या बयान करूँ?
बहुत चाहा, पर रोका दिल को, मन में उनकी तस्वीर बसाने से ,
मन की चाहत में उलझे दिल की दास्तान क्या बयान करूँ?