मंजिल
मंजिल
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निलय से निकल पड़ा मैं,
मंजील की तलाश में।
मैं अललाने लगा जब,
निष्पादन की तलाश में।
तपस में निकल पड़ा मैं,
साये की तलाश में।
निलय से निकल पड़ा मैं,
मंजिल की तलाश में।
तम में कही खो गया मैं,
कुसुमोद्यान की तलाश में।
अलातो पर चल पड़ा मैं,
तदवीर के तलाश में।
निलय से निकल पड़ा मैं,
मंजिल की तलाश में।
अलातो भरे तम को पर कर,
चला मैं मंजिल का ख्याल कर।
ख्यालों की वो मंजिल,
तदवीर ही बदल दी।
मुझे मेरे मंजिल से,
बहुत दूर कर दी।
निलय से निकल पड़ा मैं,
मंजिल की तलाश में।
अब लौटना तो चाहता हूं मैं,
निज आयतन में एक बार।
पर ख़याल ख्वाबो की,
फिर से रोक ली।
मुझे मेरे मंजिल से,
बहुत दूर कर दी।
मुझे मेरे मंजिल से,
बहुत दूर कर दी।