धर्म - सभ्यता
धर्म - सभ्यता
अजब गजब है लोग यहाँ पर,
करते निज अपमान अपनो की !!
शब्दहीन कुछ कवि बन बैठे,
कविताएं सिमट गयी जीजा साली पर !
नारी के समक्ष युद्ध में खड़े है,
बताते खुद को मर्द बड़ा ज्ञानी है !!
अपना धर्म लगता है खोटा,
पर जिहादी बड़े प्यारे है !
राम नाम से बैर है इनकी,
ज्ञानी बुद्ध बहुतेरे है !!
अरविन्द हृदय की वाणी सुन लो,
सृष्टि स्वरूप अर्धनारीश्वर है !
शिव और शक्ति का मिलान ही,
करती है सृष्टि की रचना !!
ज्ञान, ध्यान, व जागरक्छण हेतु,
धर्म सनातन बना ..!
समय मिले तो इतिहासों में झांको,
तुम पिछड़े कैसे पता करो !!
थी क्षमता तुम में चोलों की,
क्षत्रियता के जन्मदाता हो !
बैरी कौन है यहाँ तुम्हारा,
जरा गौर से देखो और समझो !!
राम नाम से मर्यादा तुम सीखो,
श्री कृष्ण से समझो नीति जरा !
सबको साथ कैसे है रखते,
भोलेनाथ बता देंगे !!
नहीं सभ्यता कोई दुनिया में ऐसी,
नहीं कोई हम सा ऋषिपुत्र वहाँ !
निशाचरों की टोली है कुछ,
जो करते तुमको कमजोर सदा !!
और अंत में इतना ही लिखना,
धर्म - सूत्र सदा सनातन ही रखना !
अपमान नहीं तुम राम का करना,
अपमान नहीं तुम कृष्ण का करना,
अपमान नहीं तुम शिव का करना,
