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Aravind Kumar Singh Shiva

Abstract Inspirational

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Aravind Kumar Singh Shiva

Abstract Inspirational

धर्म - सभ्यता

धर्म - सभ्यता

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अजब गजब है लोग यहाँ पर,

करते निज अपमान अपनो की !!


शब्दहीन कुछ कवि बन बैठे,

कविताएं सिमट गयी जीजा साली पर !

नारी के समक्ष युद्ध में खड़े है, 

बताते खुद को मर्द बड़ा ज्ञानी है !!


अपना धर्म लगता है खोटा, 

पर जिहादी बड़े प्यारे है !

राम नाम से बैर है इनकी, 

ज्ञानी बुद्ध बहुतेरे है !!


अरविन्द हृदय की वाणी सुन लो,

सृष्टि स्वरूप अर्धनारीश्वर है !

शिव और शक्ति का मिलान ही,

करती है सृष्टि की रचना !!


ज्ञान, ध्यान, व जागरक्छण हेतु,

धर्म सनातन बना ..!

समय मिले तो इतिहासों में झांको,

तुम पिछड़े कैसे पता करो !!


थी क्षमता तुम में चोलों की,

क्षत्रियता के जन्मदाता हो !

बैरी कौन है यहाँ तुम्हारा,

जरा गौर से देखो और समझो !!


राम नाम से मर्यादा तुम सीखो,

श्री कृष्ण से समझो नीति जरा !

सबको साथ कैसे है रखते,

भोलेनाथ बता देंगे !!


नहीं सभ्यता कोई दुनिया में ऐसी,

नहीं कोई हम सा ऋषिपुत्र वहाँ !

निशाचरों की टोली है कुछ, 

जो करते तुमको कमजोर सदा !!


और अंत में इतना ही लिखना,

धर्म - सूत्र सदा सनातन ही रखना !


अपमान नहीं तुम राम का करना, 

अपमान नहीं तुम कृष्ण का करना,

अपमान नहीं तुम शिव का करना, 



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