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Aravind Kumar Singh Shiva

Abstract Classics

4  

Aravind Kumar Singh Shiva

Abstract Classics

॥ दृश्य ॥

॥ दृश्य ॥

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चल रहा भयावह कृत यहाँ,

दिख रहा भयानक दृश्य यहाँ। 


ढेर लगी है लाशो की, 

चीख उठी समशाने भी।

रोते - बिलखते लोगो को देख,

हँस रहा नर पिचाश, मयखाने में बैठ।

कहता थोड़ा और पिलाओ,

बदहोश खड़ा हूँ, मदमस्त बनाओ ॥ १ ॥


आषातीत नजरें ये पूछे, 

भविष्य हमारा क्या होना है ?

हम बिलखे अपनो को खोकर,

वो मगन है हमको लूटकर।

खेल रहा वो हम लाचारों से,

लूट रहा हम बेचारो को ॥ २ ॥


मानवता अब कहा बची है,

बाप के चिता में बेटी भी जाली है।

अंग वस्त्र बेच कफ़न जो ख़रीदा,

उसको भी नर पिकासो ने छीना।

जब जब टूटी सांसो की डोरी,

उसने भर ली लूट की झोली ॥ ३ ॥


कोई रैलियों में ब्यस्त है, 

कोई सत्ता पाकर स्वस्थ है।

कोई तने छाती जीत प्रधानी,

कोई मगे टिकट बिधायकी।

जनता की इनको कहा पड़ी है,

भर रहे है झोली यही तो घड़ी है ॥ ४ ॥


अपराधियों की शान बड़ी है,

क्योकि इनकी राज़ चली है।

नेतागण साथी है इनके,

पत्रकार बाराती है।

पत्रकारों की बात बड़ी है,

शायद इनकी कलम बिकी है ॥ ५ ॥


महिमा मंडल ये उनकी है करते,

जिनके हाथ सने है खून से।

जिन्होंने लोगो की जीवन छीनी, 

उनमे ये नायक को देखे।

फेसबुक पर बटती रासन,

फेसबुक पर ही ताली बजती ॥ ६ ॥


वाहवाही ऐसी है मिलती,

जैसे सचमुच सेवा ही करदी।

महादानी मसीहा बन बैठे, 

पर नजाने कितनो की निवाला है छीने।

सिस्टम की बात करनी ही बेमानी ,

न्यायलय में भी हो रही मनमानी ॥ ७ ॥


समय का पाठ बड़ा बेढंगा, 

नाते रिश्ते बने है कड़वा।

जिनके अंचल में तन ढक सोया,

जिनके हाथो भोजन पाया।

जिनके कंधे चढ़ पाव पसारा,

उनको कन्धा देने से कतराया ॥ ८ ॥


ये बिकट परिस्थिति कैसी है दाता,

मानव ही मानव को खता।

घनघोर अधियारा छाया है,

ये कैशी तेरी माया है।

आशावो की दीप जला दो, 

निरपराधों को तुम बचा लो ॥ ९ ॥


कालचक्र सब देख रहा है,

कैसे आदम ही आदमखोर बना है।

प्रभु अरविन्देश्वर कृप करो अब,

निर्दोसो का रक्षण कर दो।

महाकाल हो कल बदल दो,

कॉल चक्र का चाल बदल दो ॥ १० ॥


कॉल चक्र का कॉल बदल दो,

अबोधो का हाल बदल दो।

चल रहे भयावह कृत बदल दो,

इन नरपिचासो का दृश्य बदल दो।

विनती मेरी स्वीकार करो,

बस इतना सा उपकार करो ॥ ११ ॥


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