वो नन्हे - नन्हे पाँव
वो नन्हे - नन्हे पाँव
जब नन्हे - नन्हे पावों से चल,
पास वो मेरे आते हैंं ।
हौले से कानो में मेरे,
मधुर संगीत सुनते हैं ।
मै कहकहे लगाकर हसता हूँ,
तब दर्द तमाम काफूर हो जाता है ।
मैं खो जाता जब मुस्कानो में,
वो ध्यान हमें दिलाते हैं ॥ १ ॥
कभी बेवजह वो आँसु छलकाते हैं,
कभी अनायास ही आँखे दिखलाते हैं ।
पर वो आँसू भी प्यारी लगते हैं,
और ज़िद भी न्यारी लगती हैं ।
जब वो खिलखिला कर हसते हैं,
तब घर जीवंत बन जाता है ॥ २ ॥
जब वो नन्हे - नन्हे हाथो से,
प्लाटिक के बने खिलौनो में ।
झट चाय बना के लाते हैं,
मै अभिभूत हो जाता हूँ ।
मै मंत्रमुग्ध उन्हें निहारता हूँ ॥ ३ ॥
झूठे पकवानो को जब खाना पड़ता,
और फिर उसका स्वाद भी बताना पड़ता ।
सर्त भी इनका बड़ा निराला,
स्वाद सभी का हैं अच्छा ही बताना ।
पकवान भले ही हो झूठे,
पर प्यार हैं उनका सच्चा सोना ॥ ४ ॥
जब वो ज़िद पर अड़ जाते हैं,
जब नासमझ बन जाते हैं।
फिर उल्टा हमें सिखाते,
झूठे ही रोते बिलखाते।
और अपना हक़ हैं दिखलाते,
तब हमें ही झुकना पड़ता हैं ।
तब हमें ही रुकना पड़ता हैं,
रुकते ही वो खिलजाते,
फिर कलियों सी मुस्काते हैं ॥ ५ ॥
कभी हम उन्हें तो कभी वो हमें सिखाते,
हम पिता हैं उनके पर वो हैं गुरु हमारे ।
फर्क हमदोनो में बहुत हैं प्यारे,
जब पिता बताये लौकिक बातें ।
तब गुरु दिखाए अलौकिक नाते ॥ ६ ॥
प्यारी प्यारी बोली वो बोले,
कानो में मधुर संगीतो को घोलें ।
धीरे - धीरे पाँव दबाके,
जब वो कोने में कही छिप जाते ।
मेरे ढूढने को तब वो तरसतें,
मौका देख जब खुद ही आ जाते ।
आकर हमें वो खूब हर्षाते,
फिर वो अपनी बातो में खो जाते ॥ ७ ॥
जाने क्या - क्या बात बताते,
नयी नयी ख्वाबो को दिखलाते।
चाँद तारे भी घर ही ले आते,
मन्त्र्मुग्ध कर खूब इतराते ।
ख़ुशिओ की सौगाते भी लाते,
खेल खेल में पाठ पढ़ाते ॥ ८ ॥
हसते इतराते संगीत सुनते,
बर्तमान में ही जीने की राह दिखते ।
कुछ भी जग में नहीं हैं स्थिर,
हमको वो ये पाठ पढ़ाते ।
गिरते उठाते फिर दौड़ लगते,
दौड़ लगाकर ख़ुश हो जाते ।
हमें जीवन की मर्म समझते,
खुद सतरंगी सपनो में खो जाते ॥ ९ ॥