STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Classics Fantasy Children

5  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Classics Fantasy Children

बचपन

बचपन

2 mins
751

एक दिन जैसे ही मैंने एक किताब पढ़ने के लिए उठाई 

उस पर मुझे एक नन्ही सी धूल जमी हुई पाई 

मुझे देखकर वह सहमी, ठिठकी और सकुचाई

जैसे कोई मासूम बालिका 

किसी बड़े आदमी को देखकर हो घबराई। 


मैंने कहा कि तुम यहाँ क्या कर रही हो 

मेरी इस किताब को क्यों गंदा कर रही हो 

वो बड़ी मासूमियत से बोली 

"अंकल , मेरे साथ कोई नहीं खेलता है

सब कहते हैं कि मैं गंदी हूँ 

और जो भी मेरे साथ खेलेगा 

मैं उसे भी गंदा कर दूंगी। 


अब आप ही बताओ अंकल 

क्या मुझे खेलने का अधिकार नहीं है

अभी तो मेरी उम्र खेलने-कूदने की है ना 

फिर सब लोग मुझे खेलने क्यों नहीं देते हैं 

सब कहते हैं कि जाओ पढ़ाई करो 

इसलिए मैं यहां आकर किताब पढ़ने लगी हूँ 

आप मुझे यहां से हटा तो नहीं दोगे ना ? 


अगर मुझे यहाँ से हटा दिया तो मैं कहाँ जाऊंगी 

मुझे कोई भी पसंद नहीं करता है 

अब मैं कहाँ जाऊं, क्या करूँ 

पढ़ते नहीं देखकर मम्मी भी मुझे मारेगी 

पापा के आने पर उनसे शिकायत करेगी

अब आप ही बताओ अंकल, मैं क्या करूँ" 


मुझे उसकी मासूमियत पर तरस आया 

उसके मम्मी पापा पर गुस्सा भी बहुत आया 

नन्हे बच्चों को खेलने भी नहीं देते हैं 

ये कैसे निष्ठुर निर्दयी अभिभावक हैं जो

क्या इतना भी बाल मनोविज्ञान नहीं समझते हैं 

पढ़ने के लिए बहुत उम्र पड़ी है 

मगर ये बचपन की उम्र दो चार ही घड़ी है 


इसमें अगर बचपना नहीं किया 

तो फिर जिंदगी में और क्या किया 

बच्चों का विकास खेल खेल में भी होता है

किताबें पढ़ने से ही क्या कोई बड़ा होता है 

मुझे धूल के मम्मी पापा की बुद्धि पर तरस आया

मगर अगले ही पल आरक्षण रूपी राक्षस का ध्यान आया


अगर सरकारी नौकरी पानी है 

तो खत्म करना होगा बचपन और जवानी है

सारी उम्र बस पढ़ने में ही लगानी है 

तब कहीं जाकर कोई छोटी मोटी नौकरी हाथ में आनी है 


बड़ा भयंकर द्वंद्व है ये 

बचपन को कुर्बान कर जिंदगी का संग है ये 

क्या करें क्या ना करें, असमंजस में जान है

इसीलिए शायद हर अभिभावक परेशान है 

मगर कोई ना कोई तो हल निकालना होगा

बचपन और जिंदगी के साथ तालमेल बैठाना होगा 


बचपना भी रह जाये और प्रतिस्पर्धा में टिके भी रह सकें

ऐसा कोई उपाय हमें खोजना होगा 

यह सोचकर मैंने कचरे के टुकड़े को पास बुलाया

धूल को उसके साथ मस्ती करने के लिए पठाया 

उनके पेरेंट्स को भी यह मर्म समझाया


"पांच साल तक खेलने कूदने दो फिर पढ़ाई पर ध्यान दो" 

पेरेंट्स की समझ में भी यह फंडा आया 

बचपन की हिफाजत कर मैं मन ही मन मुस्कुराया।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics