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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Inspirational

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Inspirational

बहस जारी है

बहस जारी है

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मानव मानव रहा कहाँ 

निज स्वार्थ सब पर तारी है

रंग बदल रहा पल पल जहां 

दानवता मानव पर भारी है,

यह बहस अब हीं जारी है।।


सोचता हूँ कब तक चलेेेगी

यूँ ही चल रहा जो तकरार है

क्या बयार प्रीत की फिर बहेगी

अंतःकरण इसका तलबगार है,

तो जारी बहस कथ्य को तैयार है।।


रूकते हैं सभी बस अभी

देखते है सब यह सोचकर 

मानव बहस का है अंत कभी

क्यूँ खाना चाहे ईक दूजे को नोचकर,

तो बहस जारी है यह सोचकर।।


अरे साथी सहपाठी सहजीवी रूको

लड़कर ऐसे सब खप जाऐंगें

आओ थोड़ा झुके,सब झुको

मानव को मान दे जहां नया बनाऐंगे,

बहस जारी है, बहस जारी है।।


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