एक खत
एक खत
एक खत लिखने की तुम्हें है चाहत
हर बार लिखा जब तुम्हें तो राहत
सुनो न सब चैन है
सुनो न पर जां बेचैन है।।
बहुत लिखने की सोचता हूॅूँ पर
दर्द अपना बयां करने से रोकता हूँ
तुम तो चुप ऐसे हो लिए
जुबां जैसे कई तुमने सिल दिए।।
ऐसे नजर फेर कोई जाता कहाँ है
तुम तो चले डगर उस
थक गया हूँ ढूँढ कर तुम्हे
पर इस राह में राही मिल पाता कहाँ हैं।।
गम यह रहा अपना बस जानो
दिन चार गिन कर जब बचते है
यूँ हीं राह नई पर कौन निकला हो मौन
कहो न ईश नहीं तो तुम हो कौन।।
सब पर आशीष बना कर रखना
रोता हूँ कि साथ हो पर नहीं हो तुम
रह गया बाकी साथी सबका कहना
धरा पूरी गया है तुम बिन अपनी अद्भुत घुम।।
☘️राजीव जिया कुमार,
सासाराम,रोहतास,बिहार।
