राग बसंती।========
राग बसंती।========
हवा गुनगुनी फिर होने लगी
कथा नई फिर से यह कहने लगी
बसंत ने रँगा फिर इसको
अपने ही रंगीले रंग रंग में
राग बसंती कायनात फिर गाने लगी।।
शीत का रंग अब लगा उतरने
ग्रीष्म का जलवा लगा बिखरने
मन मग्न करती फिजा बसंती
तरंग उमंग के हिय में छेङने लगी
राग बसंती कायनात फिर गाने लगी।।
कोयल की तान,भ्रमर के गान से
अधरों पर हर चैतन्य जी के
मुस्कान अलौकिक खिलखिलाने लगी
गलियाँ थिरक फिर गुनगुनाने लगीं
राग बसंती कायनात फिर गाने लगी।।
माँ वीणावादिनी की वीणा की झंकार
मौसम में राजा बसंत के
चहुंओर फिर हृदय हरसाने लगी
खिल कलियाँ भी फिर खिलखिलाने लगी
राग बसंती कायनात फिर गाने लगी।।