अपनी छोटी-छोटी आँखों में बड़े-बड़े सपनों को संजोती थी। अपनी छोटी-छोटी आँखों में बड़े-बड़े सपनों को संजोती थी।
किसी की भी परवाह क्योंकि मग्न हो गई हूं मैं, खुद के स्वरूप में। किसी की भी परवाह क्योंकि मग्न हो गई हूं मैं, खुद के स्वरूप में।
झूठ परखकर सच संग जुड़ा, मिल गया अब तो साचा दरबार। झूठ परखकर सच संग जुड़ा, मिल गया अब तो साचा दरबार।
हाय रे मोबाइल हाय रे मोबाइल
श्वेत आंचल से ढक जहां उजियार वह लोरी गा रही है श्वेत आंचल से ढक जहां उजियार वह लोरी गा रही है
'घिरा तेरे बाहों में हूँ ऐसे आज, जैसे उपजा तुझी में फिर आज, नाचता थिरकता तुझी में आज,मन मग्न ऐसा हुआ... 'घिरा तेरे बाहों में हूँ ऐसे आज, जैसे उपजा तुझी में फिर आज, नाचता थिरकता तुझी मे...