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Shristy Jain

Abstract

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Shristy Jain

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मेरा स्वरूप !

मेरा स्वरूप !

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बह चुकी हूं मै ,खुद के अश्कों में

खो चुकी हूं अब अपनी ही दुनिया में।


नहीं करती अब किसी की भी परवाह 

क्योंकि मग्न हो चुकी हूं मैं,खुद के स्वरुप में।

 

कई बदलावों का सफर 

तय किया है, इन आंखों ने।


कुछ बदलाव खुश कर गए तो 

कुछ गम दे गए पर नहीं करती अब

किसी की भी परवाह 

क्योंकि मग्न हो गई हूं मैं, खुद के स्वरूप में।


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