मेरा खास।
मेरा खास।
रह गए कुछ अल्फाज अधूरे मेरे,
करना तो चाहती थी बयां अपने
दिल के जज्बातों को,
लेकिन मौका देने से पहले ही वह कहीं खो गया,
रात के अंधेरे में मेरा वह खास कहीं खो गया।
अब बची है तो केवल उसकी यादें
और उन यादों के बीच सिमटती मैं।
आशा की किरण के साथ मशगूल
कि कभी तो सवेरा होगा
डूबा हुआ सूर्य फिर से उदय होगा।
पर ऐसा हो ना सका,
मेरा दिल फिर से जुड़ ना सका।
था नहीं किस्मत में वह मेरी, क्योंकि
उसकी किस्मत की लकीरों में
तो कोई और ही था।
मन तो बहुत उदास था लेकिन
वह भी मेरा खास था।
मन में थी केवल एक ही आस,
मैं रहूं या ना रहूं लेकिन
हमेशा खुश रहे मेरा वह खास।
प्यार को कभी देखा नहीं लेकिन
महसूस करती हूं तो
लगता है कि शायद यही है प्यार ।
जो तुम्हारा होकर भी हो ना सका,
पर दिल में उसके उसके सिवा कोई
ओर कभी रह ना सका।।

