स्वछंद,मेरी कविता बहने लगी हर जगह। निरंतर बह रही है उन्मुक्त नदी सी। आज भी। स्वछंद,मेरी कविता बहने लगी हर जगह। निरंतर बह रही है उन्मुक्त नदी सी। ...
'घिरा तेरे बाहों में हूँ ऐसे आज, जैसे उपजा तुझी में फिर आज, नाचता थिरकता तुझी में आज,मन मग्न ऐसा हुआ... 'घिरा तेरे बाहों में हूँ ऐसे आज, जैसे उपजा तुझी में फिर आज, नाचता थिरकता तुझी मे...