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Sheel Nigam

Abstract

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Sheel Nigam

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आह!

आह!

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दिल बड़ा नाज़ुक होता है।

सोच कर उसके इर्द-गिर्द बना ली

एक मज़बूत दीवार कठोरता की।


मुनादी करवा दी मन से

'किसी भी संवेग का प्रवेश निषेध'


एहसासों पर चुप्पी,

भावनाओं पर प्रतिबंध,

कामनाओं पर नियंत्रण,


दिल घबरा गया।

साँसें घुटने लगीं।

मन मचलने लगा।


एक 'आह' निकली,

आह ने तोड़ दिये

सारे कठोर बन्धन,

आह को मिले शब्द

और कविता बन गई।


स्वछंद,मेरी कविता

बहने लगी हर जगह।

निरंतर बह रही है

उन्मुक्त नदी सी।

आज भी।



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