ये दुनिया वाले मुझे अब खूब नचाते हैं। ये दुनिया वाले मुझे अब खूब नचाते हैं।
मेरी डोर क्या कभी मुक्त होगी ? जब मैं कठपुतली नहीं इंसान कहलाऊंगी। मेरी डोर क्या कभी मुक्त होगी ? जब मैं कठपुतली नहीं इंसान कहलाऊंगी।
एक दर्द यूं गुजरा नस नस से जैसे निकला हो तीर तरकश से, एक दर्द यूं गुजरा नस नस से जैसे निकला हो तीर तरकश से,
जब भी कोई क़लम, आह भरती है। जब भी कोई क़लम, आह भरती है।
मर्यादा के चीर-हरण की, थाह ! कहाँ ले जायेगी ? ये राह कहाँ ले जायेगी, ये चाह....। मर्यादा के चीर-हरण की, थाह ! कहाँ ले जायेगी ? ये राह कहाँ ले जायेगी, ये चाह.....
चोट खाकर भी रोना वर्जित आंसू जो निकल गए कहा जाएगा, त्रिया चरित्र सोचा था, शिला बनकर, नहीं रोएगी व... चोट खाकर भी रोना वर्जित आंसू जो निकल गए कहा जाएगा, त्रिया चरित्र सोचा था, शिल...