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Manju Saraf

Drama

3  

Manju Saraf

Drama

कठपुतलियां

कठपुतलियां

1 min
410


देखा बचपन से खेल जो

मैंने कठपुतलियों का,

सोचा कितनी सुन्दर

सजी धजी रंगमंच पर,

रंग बिखेरे हैं ये दुनिया के,


कभी हँसती कभी रोती

जीवन के हर पल को

मनोरंजक बनातीं,

मेरी भी आँखों में

अनेक रंग भरे इन कठपुतलियों ने,


मैं भी एक दिन अपना

सपना सजाऊंगी,

कठपुतलियों को रंग-बिरंगे

वस्त्र पहना इनको

रंगमंच पर नचाऊंगी,


पर आह; स्वप्न हुआ मेरा ध्वस्त,

कठपुतली बना कर नचा ना पाई,

दुनिया के आगे मैं हो गई हूँ पस्त,


ज़िन्दगी की जद्दोजहद में

खुद बन बैठी एक कठपुतली और नाच रही

अपनी ही बनाई दुनिया के रंगमंच पर,

बस अंतर यह है वे भाव विहीन थी

और मेरे दर्द मेरे चेहरे पर उभर आते हैं,


ये दुनिया वाले मुझे अब खूब नचाते हैं।


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