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Syeda Noorjahan

Drama Classics

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Syeda Noorjahan

Drama Classics

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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जो महबूब मोहब्बत में दग़ा देते हैं

कमज़र्फ अपनी नस्लों का पता देते हैं


इश्क ए हकीकी का भी पुरा हिसाब है हाजिर

खुदा की राह में क्या देते हैं क्या लेते हैं


वह ज़माना अब नहीं रहा रुहानियत का

जिस्म फरोशी को अब लोग वफ़ा कहते हैं


हाफ़िज़ है खुदा मेरी तक़दीर का लोगों

मुझे डर नहीं कौन मुझे बद्दुआ देते हैं


होश करो ख्वाबों में जीना ठीक नहीं

लोग तो आंखों से काजल भी चुरा लेते हैं


नहीं जानते यह मुझे तलाश किसकी है

फिर भी क्यों लोग रास्ते बता देते हैं


तुम तिजोरी के लुटने पर रोते हो रौशन

लोग खंडहर की ईंटें भी चुरा लेते हैं।


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