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Dinesh paliwal

Drama Romance

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Dinesh paliwal

Drama Romance

झूठ बोलना सीख गई हो

झूठ बोलना सीख गई हो

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लफ़्ज़ जुबां पर अटक रहे हैं,

रुक जाती कुछ कहते कहते,

अश्रु आंख के कोने तक आते,

रुक जाते जो थे अविरल बहते,

मन में कुछ और चेहरे पर कुछ,

ऐसी तो कभी तुम पहले ना थी

अब झूठ बोलना सीख गई हो,

तुम भी तो मेरे संग रहते रहते।।


ये साथ हमारा था जीवन भर का,

हमें सुख दुख सब संग उठाने थे,

पर कभी कभी एक छत के नीचे ही,

क्यों हम एक दूजे से बेगाने थे,

तुम दुख बांधे सब अपने आँचल में,

खुद ही तो रहीं बस ये सब सहते,

अब झूठ बोलना सीख गई हो,

तुम भी तो मेरे संग रहते रहते।।


मेरे तो बस केवल झूठे वादे थे,

जो तब तुमको पाने को बोले थे,

या जो झूठी की थी कुछ तारीफें,

इस दिल के कुछ पन्ने खोले थे,

मेरे झूठों की इस भूल भुलैया में,

तुम भूली रास्ता अब बहते बहते,

अब झूठ बोलना सीख गई हो,

तुम भी तो मेरे संग रहते रहते।।


मेरे तो है बस हर झूठ के पीछे ,

रहता था मेरा अहम और लोभ,

तुम ने जब जब भी मिथ्या बोला,

कारक उस में बस करुणा और क्षोभ,

कह ही डालो वो अनकही सब अब,

खुल जाने दो कुछ दिल की परतें,

अब झूठ बोलना सीख गई हो,

तुम भी तो मेरे संग रहते रहते।।



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